यहाँ
प्रदत्त सभी सन्दर्भ उदाहरणमात्र हेतु प्रस्तुत है। इससे कोई व्यक्ति या संस्था
वैयक्तिक रूप से सम्बद्ध नही है। यह सभी घटनाएं सत्य एवं अनुभव (As a student of
AU, JNU, IIT & R. Sk.S and teacher of R.Sk.S) पर आधारित है।
मित्रों
आज तकनीक का युग है यह तो निर्विवाद है क्योंकि आप तकनीक के बिना अपनी 24 hrs की गणना नहीं कर सकते हैं!!
यही
कुछ सोचकर University Grant Commission (University Education Development Commission कहना अधिक उपयुक्त) ने NET परीक्षा मे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष
दोनो ही रूपों मे आत्मसात किया!!
किन्तु
हमारा राष्ट्र अनूठा राष्ट्र है यहाँ जितना काम कागजों पर होता है उसका कुछ
निश्चित भाग व्यवहार मे हो तो कदाचित उन्नति वास्तविक रूप मे हो सकेगा।
आज
प्रत्येक अच्छे संस्थानों में स्वयं को विश्व के साथ तारतम्य स्थापित करने हेतु PC/लैपटाप/टैबुलेट
आदि का वितरण स्वाभाविक है।
किन्तु
जितना खर्च उस पर किया जाता है साथ ही जिस उद्देश्य (?) से किया जाता है क्या वह
सार्थक एवं उपादेय होता है?
मै
कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं- एक महत्वपूर्णशिक्षण संस्था में संस्थाप्रमुख के
पास एक PC को Replace करने हेतु Request आया।
कारण जो बताया गया सुनकर हो सकता है आपको आश्चर्य होगा. लिखा था-’ महोदय यह संगणक
बहुत ज्यादा हैंग करता है कृपया इसे बदलबाने की कृपा करें’ संस्थाप्रमुख नें समस्या
पर गम्भीरतापूर्वक विचार करते हुए 1 साल
पुराने i3 intel के बदले नये के लिये
आदेश दे दिया। एक अन्य उदाहरण देखिये भारतवर्ष के उच्चसंस्थानों में से कई
पदाधिकारी महोदय ऐसे हैं जिन्हें कम्प्यूटर तो दिया गया है पर या तो उसका उपयोग
मेल और टापिंग तक सीमित है या फिर वो भी नही जानते। दूर जाने की क्या जरूरत UGC से आप मेल से सम्पर्क करके देखिये!! अध्ययन संस्थाओं में
करोडों का कम्प्यूटर लैब तैयार किया गया है क्या बच्चे उसका उपयोग कर पाते है?
यदि
बात संस्कृत जगत् की हो तो शायद और भी दयनीय है जहाँ यह तो और भी अपरिहार्य है
क्यों कि कार्यालयीय प्रत्येक कार्य इसी पर आश्रित है। अन्य संस्था से विपरीत यहाँ
अधिकांश कार्य यूनीकोड देवनागरी पर आश्रित है। किन्तु इसका अर्थ यह नही कि इसे
मात्र टाइपिंग यन्त्र बना दिया जाय। छात्रों के लिये पाठ्यक्रम तो निर्धारित की
गयी है पर क्या कोई यह दावा कर सकता है कि ये छात्र वास्तविक रूप से इसे जान पाते
है?
उपाय
क्या है? उपाय सहज है सभी कर्मचारियों शिक्षकों को सर्वप्रथम कार्यालयीय उपकरण यथा
कम्प्यूटर, जिराक्स, स्कैन, प्रिंटिग आदि के सामान्य उपयोग का प्रशिक्षण दिया जाय
साथ ही एक वास्तविक तकनीकि विशेषज्ञ को सहायता हेतु रखा जाय, उसके बाद यदि करोडो
का खर्च तकनीकि सन्दर्भ मे किया जाएगा तो उसका लाभ वास्तविक रूप से हो पाएगा
अन्यथा मैं निश्शङ्क भाव से कह सकता हूं कि संसाधन का दुरुपयोग ही इसे कहा जाएगा।
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